Tuesday, July 12, 2022

Gautam buddha

                     ****दान की महिमा*****

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एक बार की बात है जव  भगवान बुद्ध का जब पाटलिपुत्र में शुभागमन हुआ, तो हर व्यक्ति अपनी-अपनी सांपत्तिक अपनी  स्थिति के अनुसार उन्हें उपहार देने की योजना बनाई ।

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 तो राजा बिंबिसार ने भी कीमती हीरे, मोती और रत्न बुद्ध को  पेश किए। बुद्ध देव ने सबको एक हाथ से सहर्ष स्वीकार किया। इसके बाद वह पर उपस्तित  मंत्रियों और सेठों, साहूकारों ने भी अपने-अपने उपहार उन्हें अर्पित किए और बुद्ध देव ने फिर से  उन सबको एक हाथ से स्वीकार कर लिया।



इतने में एक बुढ़िया लाठी टेकते वहां आई। बुद्धदेव को प्रणाम किया और फिर  वह बोली, ' भगवन्, जिस समय आपके आने का समाचार मुझे मिला, उस समय मैं यह अनार खा रही थी। मेरे पास कोई दूसरी चीज न होने के कारण मैं इस अधखाए फल को ही ले आई हूं। यदि आप मेरी इस तुच्छ भेंट स्वीकार करें, तो मैं अहोभाग्य समझंगी।' यह देखते हुए भगवान बुद्ध ने दोनों हाथ सामने कर वह फल ग्रहण किया।



राजा बिंबिसार ने जब यह देखा तो उनके मन में एक जिज्ञाशा उत्पन्न हुई और उन्होंने बुद्धदेव से कहा, 'भगवन्, क्षमा करें! एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।कि  हम सबने आपको इतने कीमती और बड़े-बड़े उपहार, हीरे  इत्यादि भेट में दिए है , जिन्हें आपने सिर्फ  एक हाथ से ग्रहण किया लेकिन जव इस बुढ़िया द्वारा दिए गए सिर्फ एक  छोटे एवं जूठे फल को आपने खुले ह्रदय एवं दोनों हाथों से ग्रहण किया   ऐसा क्यों?'


यह बात सुन बुद्धदेव मुस्कराए और बोले, हे राजन्! आप सबने अवश्य बहुमूल्य उपहार दिए हैं किंतु यह सब जो अपने मुझे अर्पित किया है यह आपकी संपत्ति का दसवां हिस्सा भी नहीं है। आपने जो यह दान दीनों और गरीबों की भलाई के लिए नहीं किया है, इसलिए आपके दुवारा दिया गया  यह दान 'सात्विक दान' की श्रेणी में नहीं आ सकता। 

  और भी बुद्ध  के उपदेश पढ़े 

इसके विपरीत इस बुढ़िया ने अपने मुंह का कौर ही मुझे दे डाला है। भले ही यह बुढ़िया बहुत  निर्धन है लेकिन इसे संपत्ति धन की कोई लालसा नहीं है। यही कारण है कि इसका दान मैंने खुले हृदय से, दोनों हाथों से स्वीकार किया है।'

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