बुद्ध जयंती Gautam buddha Purnima
बुद्ध जयंती(Gautam buddha Jayanti) -
यानी सिद्धार्थ का जन्म नेपाल की तराई के एक लुम्बिनी वन में कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोदन और धर्मपत्नी महारानी महामाया के घर हुआ था। सिद्धार्थ ही आगे भगवान बुद्ध के नाम से विख्यात हुए । बुद्ध के जन्म, बोध और निर्वाण के संदर्भ में भारतीय पंचांग में वैशाख मास की पूर्णिमा की पवित्रता की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है।
इस पुनीत तिथि को ही बुद्ध का जन्म हुआ, और आत्मज्ञान अर्थात बोध हुआ और महापरिनिर्वाण हुआ। गौतम बुद्ध ने अपने सभी उपदेशों में संतुलन की धारणा को ज्यादा महत्व दिया |
योग की अति(Gautam buddha Jayanti)-
उन्होंने इस समस्या पर बहुत बल दिया कि भोग की अति से बचना जितना आवश्यक है उतना ही योग की अति अर्थात तपस्या से भी बचना जरूरी है। भोग की अति से चेतना के चीथड़े होकर विवेक लुप्त और संस्कार समाप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति के दिल-दिमाग पर विनाश डेरा डल जाता है। ठीक वैसे ही तपस्या की अति से देह अति दुर्बल और मनोबल बहुत कमजोर हो जाता है। परिणामस्वरूप आत्मज्ञान की प्राप्ति अति अलभ्य हो जाती है, क्योंकि कमजोर और मूर्च्छित-से मनोबल के आधार पर आत्मज्ञान प्राप्त करना ठीक वैसा ही है जैसा कि रेत या गीली मिट्टी की बुनियाद पर भव्य भवन निर्मित करने का स्वप्न देखना । गौतम बुद्ध का कहना है कि चार आर्य सत्य हैं: पहला यह कि दुःख है। दूसरा यह कि दुःख का कारण भी है। तीसरा यह कि दुःख का निदान है। चौथा यह कि वह मार्ग भी है जिससे दुःख का निदान होता है।
बुद्ध के मत में अष्टांगिक मार्ग ही वह मध्यम मार्ग है जिससे दुःख का निदान हो सकता है। अष्टांगिक मार्ग चूंकि ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्मांत, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के संदर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है, अतः मध्यम मार्ग है। मध्यम मार्ग ज्ञान देने वाला है, शांति देने वाला भी है, निर्वाण देने वाला है, अतः कल्याणकारी है और जो कल्याणकारी है वही श्रेयस्कर (सर्वश्रेस्ट) है।
गौतम बुद्ध विश्वकल्याण के लिए सदैव मैत्री भावना पर बल देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे महावीर स्वामी ने मित्रता के प्रसार की बात कही थी। गौतम बुद्ध मानते हैं कि मैत्री के मोगरों की महक से ही संसार में सद्भाव का सौरभ फैल सकता
है। वे कहते हैं कि बैर से कभी बैर नहीं मिटता। अबैर से मैत्री से ही बैर मिटता है।
मित्रता ही एक सनातन नियम है। गौतम बुद्ध घृणा के घावों पर मोहब्बत का मरहम लगाते हैं। आज बेईमानी के बाजार में स्वार्थ के सिक्के चल रहे हैं।
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'पगड़ी उछाल' की राजनीति अनैतिकता के आंगन में अठखेलियां कर रही हैं। अन्याय की आग में ईमान को ईंधन बनाया जा रहा है। दया का दम घुट रहा है। छल-छंद की छुरियों से विश्वसनीयता को घायल किया जा रहा है। ऐसी त्रासद स्थिति से मुक्ति के लिए गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को अपने आचरण में लाना आवश्यक भी है और बहुत महत्वपूर्ण भी।