**परिश्रम और धैर्य****
Gautam buddha Ke updesh
एक बार की बात हे जव भगवान बुद्ध को किसी गांव में उपदेश देने जाना था जव भगवान बुद्ध अपने अनुयायियों के साथ किसी गांव में उपदेश देने जा रहे थे।
उस गांव से पूर्व ही मार्ग में उन लोगों को जगह-जगह बहुत सारे गड्ढे खुदे हुए मिले। बुद्ध के एक शिष्य ने उन गड्ढों को देखकर जिज्ञासा प्रकट की, आखिर इस तरह गड्ढे का खुदे होने का तात्पर्य क्या है?
बुद्ध बोले, पानी की तलाश में किसी व्यक्ति ने इतनें गड्ढे खोदे है। यदि वह धैर्यपूर्वक एक ही स्थान पर गड्ढे खोदता तो उसे पानी अवश्य मिल जाता, पर वह थोडी देर गड्ढा खोदता और पानी न मिलने पर फिर से कही और दूसरा गड्ढा खोदना शुरू कर देता ।
इसीलिए कहा जाता है कि व्यक्ति को परिश्रम करने केसाथ - साथ धैर्य भी रखना चाहिए।
बुद्ध ने कहा- महाराज! मेरे पास****
***बुद्ध की अमृत की खेती****
Gautam buddha Ke updesh
एक बार की बात हे जव भगवान बुद्ध भिक्षा के लिए एक गरीव किसान के यहां पहुंचे। तथागत बुद्ध को भिक्षा के लिए आया देखकर किसान उपेक्षा से बोला, श्रमण मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं। और बुद्ध से भी कहा तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना चाहिए और तब खाना खाना चाहिए।
फिर भगवान बुद्ध ने कहा- महाराज! मैं भी खेती ही करता हूं...।
इस पर किसान को जिज्ञासा हुई और वह बोला- भगवान बुद्ध मैं न तो आपके पास हल देखता हूं ना बैल और ना ही खेती का स्थल । तब आप कैसे कहते हैं कि आप भी खेती ही करते हो। आप कृपया अपनी खेती के संबंध में समझाइएं में जानने के लिए आतुर हूँ ।
बुद्ध ने कहा- महाराज! मेरे पास श्रद्धा का अमूल्य बीज, तपस्या रूपी वर्षा और प्रजा रूप में जोत और हल है, पापभीरूता का दंड भी है,और अटूट विचार रूपी रस्सी है, स्मृति और जागरूकता रूप में हल की फाल और पेनी है।
मैं वचन और कर्म में सदैव संयत रहता हूं। और मैं अपनी इस खेती को बेकार घास से सदैव मुक्त रखता हूं और जाव तक आनंद की फसल काट लेने तक प्रयत्नशील रहने वाला हूं। अप्रमाद मेरा बैल हे जो बाधाएं देखकर भी पीछे मुंह नहीं मोडता है। वह मुझे सीधा शांति धाम तक ले जाता है। इस प्रकार मैं अमृत की
खेती करता हूं।